वैरीकोंज नसें विश्व भर के लोगों को प्रभावित करने वाली एक आम समस्या है। यह पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों में अधिक होती है, तथा कभी-कभी 14 साल के छोटे बच्चे में भी हो सकती है।
हमारी पैर की नसों का काम है, पैरों से हृदय तक रक्त को पहुंचाना। मनुष्य के चलने से व टखने तथा पिंडलियों को घुमाने से इस काम में सहायता मिलती है। इस प्रकार हृदय तक पहुंचा हुआ रक्त पुनः नीचे आ जाए व इस कार्य में सहायक है कुछ विशेष वाल्व व जो केवल पैरो मे ही मौजूद होते है।वे रक्त को पैरो मे वापिस आने से रोकते है।
कभी-कभी ये वाॅल्व कमजोर हो जाते है, जिसके कारण पैरों से हृदय की ओर जाने वाला रक्त उल्टा बह कर पैर की पिंडलियों तथा टखनो मे ही वापस आने लगता है। लम्बी अवधि तक सीधे खड़े रहने से यह होता है।
गर्भावस्था मे भी कई स्त्रियो को ये बीमारी हो जाती है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान होने वाले हार्मोनिल बदलाव पैरों के वाल्व को कमजोर बना देता है। अधिकांश स्त्रियो मे ये शिशु जन्म के बाद सामान्य हो जाते है, किंतु कई बार इन वाल्व के कमजोर होने से पैरों में बदरंग से चकते व धब्बे पड़ जाते है,
जो देखने में बहुत कुरूप लगते है।
कमजोर वाल्व या फिर लम्बी अवधि तक खड़े रहने से हुए रक्त के इस उल्टे बहाव के कारण दर्द व भारीपन व विभिन्न आकार की दिखने वाली नसें या सूजन इत्यादि लक्षण दिखने लगते है। ये गुच्छे जैसी दिखने वाली नसे बहुत कष्टदायक होती है तथा उभर कर बाहर निकलती हुई कुरूप लगती है
। यह नसें तथा पिंडलियों मे रक्त इक्टठा होने से होता है।अक्सर लेटने से या पैरों को हृदय की सतह से ऊपर रखने से यह लक्षण कम हो जाते है। किन्तु ये हमेशा संभव नहीं होता। अधिकतर व्यक्ति इसे रात मे सोते समय ही कर पाते है।
कभी-कभी भीषण परिस्थितियो मे इस समस्या के कारण एडियो के चारों ओर बदरंग चकते या धब्बे पड़ जाते है व छाले हो जाते है और खून भी निकलने लगता है
pregnancy. The hormonal changes in pregnancy lead to a weakening of these vein valves, but often this returns to normal on completion of pregnancy and delivery. Due to the weakening of these valves at multiple levels, it leads to the development of unsightly veins at various places in the legs, eg. behind the knee, in the calf, around the ankle etc.
As a result of the backward flow of blood on standing for prolonged periods in individuals with weakened/ damaged valves, symptoms like pain, heaviness, tiredness, restlessness, swelling and visible veins of various sizes begin to appear. These symptoms often lead to irritability as these are not understood and expressed properly by the sufferer. The visible veins tend to be very tortuous and bulge out looking unsightly. These are all as a result of pooling of blood in the veins and in the calf on standing, and almost always decrease on lying down and keeping the legs at a higher level than the level of the heart. But of course this is not possible always, and can be done only at night by majority of the people. Occasionally in severe situations, it leads to dark brown discoloration around the ankle with ulcerations. Other complications like clotting in these abnormal veins occur which is very painful. Sometimes this clot can embolize to the lungs and become life threatening. Spontaneous bleeding can occur which is often profuse but painless.
वैरीकोंज नसें की एक सरल शारीरिक जांच तथा अल्ट्रा साउण्ड जाॅंच डूप्लेक्स टेस्ट से पहचाना जा सकता है। यह डूप्लेक्स टेस्ट हमें न केवल वेरीकोज नसें होने का कारण बताता है बल्कि इस समस्या के उपचार प्रबंध के लिए भी जरूरी है। साथ ही इससे यह भी जाना जा सकता हे कि समस्या के निदान के लिए शल्य क्रिया आवश्यक है या नही। शल्य क्रिया के उपरांत भी यही टेस्ट हमे बताता है कि समस्या किस हद तक ठीक हुई है।
वैरीकोंज नसों के उपचार साधनों मे पिछले एक दशक में बहुत विकास हुआ है। पहले इन नसों को शल्य क्रिया द्वारा काट कर निकाल दिया जाता था। इस विधि से रक्त का अत्यधिक बहना अस्पताल में अधिक दिन तक रहना तथा अधिक पीड़ा होना आम साइड इफेक्ट थे साथ ही समस्या के पुनः होने की संभावना भी अधिक होती थी। आज वैरीकोंज नसों का उपचार विशेष लेजर तथा radio-frequency यंत्रों द्वारा किया जाता है। पैरो के टखने के पास एक छोटा सा पिन होल बनाकर भीतर ही भीतर नसों को ठीक किया जाता है। इस उपचार से नसों को शरीर की प्रणाली से अलग करके शरीर के अन्दर ही रहने दिया जाता है। पैरो का कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए अन्य कई नसें होती है। धीरे-धीरे अलग की गई नसें शरीर मे घुल जाती है और इसके अवशेष भी बाकी नही रहते है। यह सारी प्रक्रिया अल्ट्रासाउंड के जरिए शल्य चिकित्सक द्वारा की जाती है। इस उपचार के कई लाभ है। ऑपरेशन में कम समय लगता है। रक्त कम बहता है। एक ही दिन में यह पूरी प्रक्रिया की जाती है तथा कम कष्टदायक होती है। मरीज शीघ्र ही अपनी दिनचर्या पर आ सकता है। इस शल्य क्रिया के बाद कोई दाग धब्बे नही रहते है। शल्य क्रिया के तुरंत बाद चलने को प्रोत्साहीत किया जाता है तथा ऑंपरेशन के बाद कुछ समय के लिए विशेष कंप्रेसिव मोजे पहनने होते है।